Friday 20 February 2015

भोजपुरी गीत-संगीत : बलात्कार की संस्कृति का जहरीला गान


समता राय

कहां से शुरुआत करें, कुछ समझ में नहीं आ रहा है! मुझे बचपन से ही संगीत में बहुत रुचि रही है। मेरे मां-पापा मुझे लोगों के जीवन से जुडे़ हुए गीत सिखाते-सुनाते। वह गीत जो गांव में शादी, छट्ठी आदि तमाम रस्मों में गाए जाते, वो सब भी बहुत अच्छा लगता था। यह सब सुनते-गाते जब आज के दौर के संगीत पर हम आते हैं तो लगता है कि कहां आ गए हैं, किस दौर में जी रहे हैं! 

हम सबसे ज्यादा लड़कियों को अपनी संस्कृति और सभ्यता बताते और सिखाते हैं। आज के समय में जब हम मंगल पर पहुंचने की खुशी मनाते हैं, उसी वक्त हम समाज में लड़कियों की बेखौफ जीने की आजादी को खत्म कर रहे हैं। यह हर तरफ से हो रहा है। चाहे वह घर हो, बाहर हो, काॅलेज, सड़क, मुहल्ला, पढ़ना, नौकरी, शादी- किसी भी बात पर निर्णय का अधिकार है ही नहीं। बल्कि उनके लिए और भी खराब माहौल बनाया जा रहा है। इसमें भोजपुरी संगीत का बहुत बड़ा योगदान है। बल्कि यह भी कहा जा सकता है कि समाज में औरतों को ये पुरुष सत्ता किस तरह से देखती-समझती है, इससे बखूबी पता लग सकता है। हम मनोरंजन के लिए सबसे ज्यादा जिस माध्यम को अपनाते हैं, वो हैं गाने और फिल्म। अश्लीलता की भी शायद कोई हद पार हो सकती है तो इन दोनों जगहों पर बड़ी आसानी से उसको भी पार करते गीतों को देखा-सुना जा सकता है। लोकगीत या लोकभाषा के नाम पर भोजपुरी जैसी भाषा को अश्लील भाषा की उपाधि दिलाने में इन गानों का योगदान है। वैसे तो इंटरनेट पर सारे गाने हैं और बाजार में तो दस से बीस रुपए में ये गाने मिल जाएंगे। पर फिर भी मैं कुछ गानों का जिक्र जरूर करना चाहती हूं।

1. बीस पचास पर मानब ना बतिया

देबऽ हजरिया त उठाइब घघरिया

तोहर छोट बा उमरिया, मूसर घूसी ना भितरिया... (गायक - छोटू केसरी और खूशबू)

2. पतोहिए पऽ होली में ससुरा पगलात बा

पतोहिए के चोली पऽ ससुरा पगलात बा (गायक- अजय अकेला)

3. राजा दम धरऽ हो तनिका, मजा मरिहऽ बारी बारी (गायिका- मानती मौर्या)

4. मांगता देवरा खेले के खेलौना बतावऽ का दीं

हमार टोवेला फुलौना बतावऽ का दीं 

‘जींस तोहार बा टाइट’ और ‘जींस ढीला करऽ’ जैसे गानों के रचयिता तो बिहार के संस्कृति मंत्री विनय बिहारी ही हैं। और बहुत से गाने हैं, अनंत गाने जिसको मैं लिख नहीं सकती। यहां खास तौर पर ‘भोजपुरी हाॅट रंडी डांस साॅन्ग’ भी मिल जाएगा। जहां लोकभाषा और लोकगीत के नाम पर संस्कृति-सभ्यता-परंपरा का दम भरनेवाले लोगों द्वारा इस तरह से विकृत संस्कृति को बढ़ावा दिया जा रहा है, वहां किस दम पर महिला सशक्तीकरण की बात की जा रही है? 

हमें सबसे ज्यादा रिश्ता निभाना सिखाया जाता है- ससुराल जाना तो ससुर को पिता, देवर को भाई समझना। और दूसरी तरफ उसी समाज में हमें होली में सबके सामने चाहे देवर, ससुर, पति, दोस्त कोई भी हो, इन गीतों में खेलने का सामान बनाकर प्रस्तुत किया जाता है। 

जिस दौर में बेखौफ आजादी की मांग हो रही है, उसी दौर में लड़कियों को प्रेम से रोकने के लिए ‘लव जेहाद’ जैसा अफवाह फैलाया जा रहा है। लड़के-लड़की एक साथ किसी पार्क में बैठे नजर आ जाएं, तो पुलिस दमन पर उतारू हो जाती है और हमारे देश के नेता लड़कियों को दायरे में रहने की बात करने लगते हैं। आज आॅटो रिक्शा और बस में तथा त्योहारों, खासकर होली में इस तरह के अश्लील गाने सरेआम बजते हैं, तब कहां जाते हैं दायरे में रहने की सीख देने वाले? पुलिस कहां रहती है? जो खुद हमारे अंग को खिलौना बनाकर गली-मुहल्लों में मनोरंजन के लिए बजवाते हैं तो वे नारी सशक्तीकरण और इस तरह की बातों को करने का पाखंड क्यों करते हैं?

बिहार में ऐसे गानों का निर्माण सबसे ज्यादा हो रहा है। गुड्डू रंगीला, छैला बिहारी, खेसारी लाल, पवन सिंह, अरविंद अकेला उर्फ कलुआ और ऐसे तमाम गायक खुलेआम इस तरह के अश्लील गीत गाते हैं, उनका वीडियो हर दुकान पर आसानी से मोबाइल में भरवा के देखा जाता है। कौन हैं ये लोग? किसके दम पर ये करते हैं? क्या इनको रोकना सरकार का काम नहीं? शायद नहीं। क्योंकि ऐसे कलाकारों को शासकवर्गीय पार्टियां अपना उम्मीदवार बनाती हैं और जीतने पर उन्हें मंत्री तक बना डालती है। केंद्र में भाजपा के सांसद मनोज तिवारी जो दिल्ली से चुने गए हैं, वे एक तरफ लाइफ ओके टीवी चैनल पर ‘सावधान इंडिया’ की एंकरिंग करते हैं, दूसरी तरफ खुद इस भोजपुरी फिल्म-म्यूजिक इंडस्ट्री के सुपर हीरो और गायक हैं और उन्होंने भी स्त्रीविरोधी-सामंती प्रवृत्ति से ग्रस्त गीत गाए हैं। जहां तक बिहार की बात है तो यहां के संस्कृति मंत्री विनय बिहारी का खुद भोजपुरी के अश्लील गीतों के विकास में भरपूर योगदान है। आखिर इनसे हम किस तरह की संस्कृति की उम्मीद कर सकते हैं? गीतों को सर्च करने के दौरान एक भोजपुरी एलबम में गायकों की लिस्ट में विनय बिहारी का भी नाम भी मिला। उनके गीत के बोल हैं- ‘काका हमर विधयक बाड़न ना डेराएम हो, ए डबल चोटीवाली तोहरा टांग ले जाएम हो’। लड़कियों का दिनदहाड़े अपहरण, उनके संग बदसलूकी, छेड़खानी, बलात्कार, हत्या- ये सब इनके लिए मनोरंजन का विषय है। कुछ महीने पहले महिलाओं पर बढ़ रहे यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर जब इन्होंने अपना मुंह खोला था तो कहा कि लड़कियों के पास मोबाइल फोन नहीं होना चाहिए, उन्हें जींस-टाॅप नहीं पहनना चाहिए। लेकिन अपने गीतों के वीडियो एलबम में लड़कियों के कपड़े सरेआम खोलते हुए उन्हें जरा भी शर्म नहीं आती। भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के एक और महानायक हैं रवि किशन। कुछ दिनों पहले वे पटना के गांधी मैदान के पास झाड़ू लगाकर स्वच्छ भारत अभियान का हिस्सा तो बने, लेकिन जिस सड़ी-बजबजाती भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के वे सुपर हीरो हैं, वहां की सड़ांध उनको महसूस नहीं होती, क्योंकि दुनिया इन्हें इसी बदबू की वजह से जानती है। 

पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान जब जगह-जगह मोदी की रैली हो रही थी, तो बिहार में मोदी की रैली के प्रचार गीत के गायक एवं गायिका पवन सिंह और पाखी हेगड़े थे। ये वही पवन सिंह हैं जो ‘राखऽ लगाके बोरोलीन’, ‘अइसे ना देखलावऽ जांघ, कउनो टांग ले जाई’ जैसे गीत गाते रहे हैं। ऐसे गीतों को गानेवाले, लिखनेवाले और इनका वीडियो बनानेवाली कंपनियां सरेआम सबके सामने सीना तान के अपना फोन नंबर व पता सहित बाजार में दुकान सजाकर बैठी हुई हैं। दरअसल ये लोग बलात्कार की संस्कृति के पैरोकार हैं। इनके राजनीतिक संरक्षक और ये कलाकार समाज में बढ़ रही घटनाओं पर चिंता भी जाहिर करते रहते हैं, लेकिन औरतों, बच्चियों, वे चाहे जिस उम्र की हों, के लिए ये खौफ भरी दुनिया तैयार करने में ही लगे हुए हैं। अब तो बलात्कारियों की तुलना जानवरों से भी करना गलत लगता है, औरत के शरीर में राॅड से लेकर शीशा, मोमबत्ती, मिर्च या उसका जो मन करे, उसके भीतर डालने का काम कोई जानवर नहीं, बल्कि मनुष्य करता है। आखिर इस तरह की विकृत और हिंसक सोच कैसे पैदा होती है? औरत को सरेआम नंगा करने, उसका हिंसक यौन उत्पीड़न करने तथा उसके शरीर पर उसी का अधिकार खत्म कर देने का काम तो जानवर से बदतर इंसान ही कर सकता है।

हमारे समाज और देश में इसकी चिंता भी खूब करते हैं लोग कि बच्चे इन सबसे बहुत प्रभावित हो रहे हैं। बिल्कुल होंगे। वैसे भी बच्चों के लिए किसी सरकार, किसी नेता के पास कोई सोच नहीं है। कहा जाता है कि बच्चे आजकल बहुत अजीब-अजीब गाना गाते हैं। क्यों नहीं गाएंगे? उनके सामने टीवी में आज के टाॅप बाॅलीवुड गायक हनी सिंह ‘चार बोतल वोदका’ गाएंगे तो बच्चे तो वही सीखेंगे ही। बिहार का अरविंद अकेला, जो कलुआ के नाम से जाना जाता है, वह 2008-09 से ही, जब उसकी उम्र 12 या 14 साल की रही होगी, तभी से भोजपुरी की जहरीली संस्कृति का वारिस हो गया। उसी समय ‘भतार बाड़ऽ नाम के, नइखऽ कउनो काम के’, ‘सकेत होता चोलिया के हूक राजा जी’ जैसे गीत गाए। एसआरके संजीवनी कंपनी के मालिक (गोविंद बिहारी ) के लोग इसे प्रमोट कर रहे थे। दो-तीन साल पहले तो उस पर भोजपुरी फिल्म भी बनी, जिसका नाम था- कलुआ जवान हो गइल। 

हम किशोरों में बढ़ रहे आपराधिक मनोवृत्ति पर विचार-विमर्श करते हैं कि जुवेनाइल एक्ट के तहत उम्र 14 रखें या 16 या 18 पर, लेकिन इस बात पर हमारा ध्यान क्यों नहीं जाता कि इस तरह के माहौल को जो लोग बना रहे हैं, कलुआ जैसों को जो कंपनी बना रही है, उनके खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई हो? आखिर सरकार इस तरह की सड़ांध फैलानेवाले तत्वों पर अंकुश क्यों नहीं लगाती? औरतों पर बढ़ रहे दमन को बढ़ावा देने वाले लोगों को क्यों छूट मिली हुई है? गुड्डू रंगीला जिसके गाने हमारे कान में गरम शीशे की तरह पड़ते हैं, वे दुर्गा पूजा से लेकर होली शादी सब में क्यों बजते हैं? क्या सरकार और प्रशासन को यह सब सुनाई-दिखाई नहीं देता? खूब दिखाई और सुनाई देता है। लेकिन यौन विकृति और उत्पीड़न वाले गानों का एक जबर्दस्त बाजार बन चुका है। इस बाजार से सत्ताधारी पार्टियों को भारी चंदा भी मिलता है। नारी सशक्तीकरण का दम भरनेवाली ये राजनीतिक पार्टियां इनकी संरक्षक हैं। संदर्भवश, एक आंकड़े के मुताबिक भारत के संसद में 186 ऐसे माननीय सदस्य हैं, जिनके ऊपर बलात्कार व हत्या जैसे संगीन अपराधों का केस दर्ज है। ऐसे ही लोग अपने आयोजनों में खुद इन गानों पर नाचते और लड़कियों को नचवाते हैं और बलात्कार की घटना होने पर लड़कियों को ही इसका कारण बताते हैं।

खैर, इन लोगों से अब कोई उम्मीद भी नहीं है। आज तक औरतों को जो भी हासिल हुआ है, चाहे वह शिक्षा का हक हो या अपने अस्तित्व की लड़ाई या समाज में अपनी पहचान हो, यह सब उन्होंने समाज से लड़कर लिया है और आगे की लड़ाई के लिए भी तैयार रहना होगा। हम सबको मिलकर इस अश्लील संस्कृति के ठेकेदारों को सबक सिखाना होगा। इन तमाम सीडी कंपनियों, गायकों, गीतकारों के खिलाफ एक आंदोलन शुरू करना होगा जो हमारे समाज में बुरी तरह से अपनी जड़ें फैलाए हुए है। तमाम ऐसे लोगों का बहिष्कार करना होगा, जो इस अष्लीलता के वाहक हैं। हमें हर उस गली-मुहल्ले में इन गीतों के जरिए हो रही औरतों की अश्लील नुमाइश को बंद करना होगा जो महज मनोरंजन के नाम पर लोगों के दिलो-दिमाग पर हावी होता जा रहा है और सबको वहशी बना रहा है, जो समाज में बच्चों की भावनाओं, उनके स्वस्थ विकास को बाधित करके उन्हें विकृत बना रहा है। हमें ऐसे मनोरंजन के लिए भी संघर्ष करना होगा, जो हमारे समाज की सोच को स्वस्थ बनाए। हमें उन जनगीतों को सामने लाना होगा, जिन्हें सुनकर हम उस जनमानस को समझें उनको सम्मान दें, उनके हर मुश्किल में, खुशी में साथ रहें जिनकी आबादी 80 प्रतिशत से भी ज्यादा है। एक बेहतर समाज बनाने के लिए, एक बेखौफ समाज रचने के लिए हमें उस आधी आबादी का साथ देना होगा, जिसने हमें पैदा किया है। 
(समकालीन जनमत, जनवरी 2015)

No comments:

Post a Comment